
सुप्रीम कोर्ट ने कहा-कस्टम्स अधिकारियों को पुलिस अधिकारी नहीं मान सकते
नई दिल्ली,। सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक अहम फैसले में कहा है कि गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स यानी जीएसटी अधिनियम और कस्टम्स अधिनियम के मामलों में अग्रिम जमानत का प्रावधान लागू किया जाएगा। चीफ जस्टिस संजीव खन्ना की अगुआई वाली बेंच ने कहा कि एफआईआर दर्ज न होने की स्थिति में भी व्यक्ति अग्रिम जमानत के लिए अदालत का रुख कर सकते हैं। यह फैसला भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता और उसके बाद लागू भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता के तहत जारी किया गया है। सुनवाई के बाद पिछले साल 16 मई को इस मामले पर फैसला सुरक्षित रख लिय था। यह फैसला चीफ जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस एमएम सुंदरेश और जस्टिस बेला एम त्रिवेदी की बेंच ने सीजीएसटी, एसजीएसटी और कस्टम्स अधिनियम की दंडात्मक धाराओं की संवैधानिकता को चुनौती देने वाली 279 याचिकाओं पर सुनाया गया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट (पीएमएलए) के तहत गिरफ्तारी तभी की जा सकती है जब कारणों पर विश्वास हो। अब इस सिद्धांत को जीएसटी और कस्टम्स अधिनियम की गिरफ्तारियों पर भी लागू किया गया है। कोर्ट ने कहा कि जीएसटी विभाग द्वारा गिरफ्तारी को लेकर जारी सर्कुलर का सख्ती से पालन होना चाहिए। कोर्ट ने यह भी साफ कर दिया है कि कस्टम्स अधिकारियों को पुलिस अधिकारी नहीं माना जा सकता। सीजेआई खन्ना ने कहा कि हमारे पास डेटा है, जो दिखाता है कि कर भुगतान में बल प्रयोग और जबरदस्ती के आरोपों में कुछ सच्चाई हो सकती है। यह कानून के खिलाफ है और इसे बर्दाश्त नहीं किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि यदि कोई व्यक्ति इस तरह के दबाव में कर चुकाता है, तो वह रिट याचिका दायर कर न्याय की गुहार लगा सकता है। कोर्ट ने कहा कि सिर्फ संदेह के आधार पर गिरफ्तारी नहीं की जा सकती है। अधिकारियों को गिरफ्तारी से पहले प्रमाणित साक्ष्य रखना होगा, जिसे मैजिस्ट्रेट सत्यापित कर सके। कोर्ट ने कहा कि गिरफ्तारी के प्रावधानों में अस्पष्टता के कारण नागरिकों को परेशान नहीं किया जाना चाहिए। जीएसटी अधिनियम में गिरफ्तारी की शक्ति अस्पष्ट है, इसलिए इसे कोर्ट द्वारा नागरिक स्वतंत्रता को मजबूत करने के दृष्टिकोण से व्याख्या किया जाएगा। कई बार ऐसा लगता है कि जब तक गिरफ्तारी नहीं होती, तब तक जांच पूरी नहीं हो सकती है, लेकिन यह इस कानून का उद्देश्य नहीं है। यह गिरफ्तारी की शक्ति को सीमित करता है। यह फैसला न केवल जीएसटी और कस्टम्स मामलों में गिरफ्तारी की शक्ति को नियंत्रित करेगा, बल्कि अग्रिम जमानत का मार्ग भी प्रशस्त करेगा और करदाताओं को जबरदस्ती कर वसूली से बचाने में मदद करेगा। यह फैसला करदाताओं और व्यापारियों के लिए बड़ी राहत है, क्योंकि अब वह एफआईआर दर्ज होने से पहले भी गिरफ्तारी से बचाव के लिए अग्रिम जमानत की मांग कर सकते हैं।