
EOW ने कसी जांच की कमर – FIR और गिरफ्तारियां जल्द
रायपुर । छत्तीसगढ़ की राजधानी से देश की राजधानी तक हलचल मचाने वाला एक मेगा मुआवजा घोटाला अब जांच एजेंसियों के रडार पर है। बहुप्रतीक्षित भारतमाला परियोजना के तहत ज़मीन अधिग्रहण में भारी गड़बड़ी का मामला सामने आया है, जिसकी जांच अब राज्य की आर्थिक अपराध शाखा (EOW) कर रही है। शुरुआती आंकड़ा 43 करोड़ तक सीमित था, लेकिन जैसे-जैसे परतें खुलीं, घोटाले का आंकड़ा 220 करोड़ रुपये के पार पहुंच गया। EOW ने प्रशासन से लगभग 500 पन्नों की विस्तृत जांच रिपोर्ट तलब की है और पहले ही कई गोपनीय दस्तावेज अपने कब्जे में ले चुकी है। सूत्रों की मानें तो अब इस घोटाले में शामिल सरकारी अफसरों, भू-माफियाओं और रसूखदारों पर जल्द ही FIR और गिरफ्तारियों की कार्रवाई हो सकती है। भारतमाला परियोजना के तहत रायपुर से विशाखापट्टनम तक 950 किमी लंबी हाईवे बन रही है। इसके लिए किसानों की जमीन अधिग्रहित की गई, लेकिन मुआवजा देने की प्रक्रिया में फर्जीवाड़ा हुआ। जमीन की कीमत 5 लाख थी, लेकिन दस्तावेजों में उसे 25 से 30 लाख दिखाकर मोटा मुआवजा निकाला गया। भू-माफियाओं और अधिकारियों की मिलीभगत से कई फर्जी क्लेम तैयार किए गए, जिससे 35 करोड़ की मूल राशि को 213 करोड़ रुपए बढ़ाकर बांट दिया गया। इस घोटाले की फाइलें सालों तक दबा दी गई थीं, लेकिन जब नेशनल हाईवे अथॉरिटी के चीफ विजिलेंस ऑफिसर ने दिल्ली से रायपुर कलेक्टर को जांच का निर्देश दिया, तब जाकर प्रशासन की नींद टूटी। दिल्ली से दबाव पड़ते ही कलेक्टर की जांच रिपोर्ट सामने आई, जिसने पूरे सिस्टम की पोल खोल दी। नेता प्रतिपक्ष चरणदास महंत इस मुद्दे को विधानसभा बजट सत्र 2025 में उठा चुके हैं। उन्होंने प्रधानमंत्री कार्यालय (PMO) और केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी को पत्र भेजकर CBI जांच की मांग की है। उनका आरोप है कि राज्य सरकार ने जानबूझकर इस घोटाले पर पर्दा डालने की कोशिश की। भूमि अधिग्रहण अधिनियम 2013 के अनुसार, अधिग्रहित ज़मीन की कीमत के अलावा सोलेशियम यानी भावनात्मक क्षतिपूर्ति के तौर पर समान राशि और दी जाती है। यानी 5 लाख की ज़मीन के बदले किसान को कुल 10 लाख और 10 लाख सोलेशियम मिलाकर 20 लाख रुपये तक मुआवजा मिल सकता है। इसी व्यवस्था का गलत फायदा उठाकर इस महाघोटाले को अंजाम दिया गया।