अनिल वर्मा
(वरिष्ठ पत्रकार)
इस बार दिल्ली विधान सभा का चुनाव सत्तारूढ आप, विपक्षी भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस के लिए नाक का सवाल बन गया है।कोई भी पार्टी इस चुनाव को हल्के मे नही ले रही।
भाजपा जो पिछले 27सालो से दिल्ली की सत्ता से बाहर है ओर वह इस बार बनवास तो कांग्रेस 15 साल के सूखे को खत्म होने की आस के साथ चुनावी मैदान मे है तो आप सत्ता बचाने मे जुटी है।
दिल्ली विधानसभा के चुनाव अगले माह मे होने है । सत्तारूढ आप मुख्य विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस चुनावी जंग के मैदान मे पूरे दमखम से ताल ठोक रहे है। पूर्व मुख्यमंत्री श्री अरविंद केजरीवाल सहित आप पार्टी के नेताओ को पता है कि सत्ता विरोधी लहर हैं ,इसलिए वे इस पर पार पाने के लिए जी-जान एक किये हुए है।
आप पार्टी जहा रोज नई लोकलुभावन घोषणाये कर रही है । आप नेताओ की की सोच है की आगामी चुनावों में उसे इस स्थिति का सीधा फायदा मिल सकता है ,तो विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी को लगता है केजरीवाल सहित पार्टी के सभी नेताओं को भ्रष्ट बताने और उनके जेल मे फिर से जाने की चर्चा करने से ही उसे लाभ मिलना तय है । इस सबके बीच कांग्रेस अपने खोए हुए आधार को फिर से पाने का जोरदार प्रयास कर रही है।
आप पार्टी गत11 वर्षों से सत्ता में है तो इससे पहले कांग्रेस दिल्ली पर 15 साल तक राज कर चुकी है।
कांग्रेस जो पिछले दो बार से विधानसभा में अपना खाता तक नहीं खोल पाई, उसे उम्मीद है कि इस बार उसका सूखा खत्म हो जायेगा।
आप पार्टी कांग्रेस के ही मूल आधार झुग्गी- झोपड़ी और गरीब वोटर में जबरदस्त सेंध लगाने में कामयाब रहने के कारण ही सत्ता मे आने मे कामयाब रही है।
आप पार्टी में नंबर दो के नेता दिल्ली के पूर्व उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया अब नये क्षेत्र जंगपुरा से मैदान मे है ओर साथ ही पार्टी के प्रचार कमान भी वही संभाल रहे हैं। पार्टी को उम्मीद है कि वह भाजपा को कड़ी टक्कर देने में कामयाब रहेगी।इसके लिए अब पार्टी “आपके केजरीवाल फिर आयेगे “अभियान चला कर चुनावी प्रचार में कूद चुकी है। उसे लगता है कि वह इतनी सीधे बचाने मे कामयाब रहेगी कि एक बार फिर से सत्तारूढ हो सके। 70 सदस्यो की विधानसभा मे उसके 62 विधायक है।
भाजपा ने पिछले चार वर्षों में जिस प्रकार बहुत दमखम के साथ आप पार्टी और उसके नेताओं को भ्रष्टाचारी बताने का अभियान छेड़ा हुआ है उसे उससे बडा लाभ मिलने की उम्मीद लगा रखी है ।
दिल्ली जहां कभी जनसंघ और भाजपा की तूती बोलती थी वहां 27 वर्षों के वनवास को तोड़ने की उसकी कोई भी चाल अब तक सफल नहीं हो पाई।भाजपा लोकसभा में चाहे गत दो बार से सभी सातों सीटें पाने में कामयाब हो रही है ,लेकिन विधानसभा में वह आठ सीटों से आगे नही बढ पाई। इससे साफ है की प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी का करिश्मा विधानसभा में नही चल पा रहा । भापजा अपनी सारी शक्ति आप पार्टी को भ्रष्ट बताने में ही खर्च कर रही है,जिसके चलते ही वह इस बार दिल्ली नगर निगम में भी हार गई जिस पर उसका गत 15 वर्षों से कब्जा था।
भाजपा के कई बड़े नेता मानते हैं की चुनौती बड़ी है और इसे पर पाने के लिए वह मध्यम वर्ग को यह समझाने में जुटे है की “आप ” भ्रष्ट है। उन्हे उम्मीद है कि और वह इस वर्ग का झुकाव एक बार फिर अपनी तरफ मोड़ने ने कामयाब हो जायेगे। इसके लिए भाजपा केजरीवाल की सरकार के खिलाफ अपनी बेहद अक्रामक रणनीति जारी रखेगी।
भाजपा के साथ सबसे बडी दिक्कत यह है कि लगातार हार मिलने बाद उसके पास दिल्ली मे ऐसा कोई चेहरा नही जो पार्टी और सरकार का नेतृत्व कर सके ।हर बार चुनाव के समय उसने बाहरी चेहरे को आगे कर दिया जिसका खमियाजा पार्टी आज भी भुगत रही है और इस बार भी बाहरी चेहरे को ही तवज्जो दिये जाने की चर्चा है। सबसे अलग ओर कार्यकर्ता के दम पर चलने वाली भाजपा मे पिछले कुछ वर्षो से दूसरे दलो के इतने नेता भर्ती हो चुके है कि इस बार कम से कम 10 सीटो पर बाहरी नेताओ का ही बोल-बाला रह सकता है। पार्टी चुनावो के लेकर कितनी गंभीर है इसका अन्दाज इसी से लगता है कि उसने सभी बड़े नेताओ को चुनावी मैदान मे उतरने को तैयार रहने को कहा है। पार्टी के इस फैसले से अन्दर खाने मारकाट मची हुई है गुटबाजी चरम पर है।
कांग्रेस जो दो बार से विधानसभा में अपना खाता तक नहीं खोल पाई इस बार अपने प्रदर्शन मे बड़े स्तर पर सुधार के प्रयास में है। पार्टी के नेताओं का मानना है की इस बार पार्टी कम से कम 30 सीटों पर पूरे मनोयोग से लड़ाई लड़ने की जोरदार तैयारी मे है।
आप और कांग्रेस जहां अपने उम्मीदवारो की सूची घोषित कर चूके है वही भाजपा गुटबंदी के चलते भारी परेशानी मे है।घोषित तौर पर वह अपनी इस कमजोरी को स्वीकार नही करती और बडी पार्टी का दंभ भरते हुए सभी फैसले सावधानी से लेने का दावा करती है।सच्चाई ये है कि गुटबंदी के कारण भाजपा की सूची चुनावो की घोषणा के बाद 15 जनवरी से बाद ही जारी होने की सम्भावना है